Friday 28 April 2017

क्या किशनगंज सांसद मौलाना कासमी को 2019 चुनाव के लिए वारिस चुन लेना चाहिए?

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नोट: ये लेख लोगों से मिली प्रतिक्रियाओं के आधार पर लिखा गया है, अगर इससे किसी की भावना आहत होती है तो लेखक क्षमाप्रार्थी हैं !  



आज देश की राजनीति में एक साफ़-सुथरी छवि बरक़रार रखना और लोगों से बेइंतहा मोहब्बत एवं इज़्ज़त बहुत कम ही राजनेताओं को नसीब हो पाता है ! यूँ कहें कि ऐसे उदहारण बहुत कम ही देखने को मिलते हैं, ऐसे ही एक उदहारण हैं बिहार के किशनगंज ज़िले के सांसद मौलाना असरारुल हक़ कासमी जिन्हें आबादी का एक बड़ा हिस्सा काफी मोहब्बत और इज़्ज़त करता है ! मौलाना असरारुल हक़ कासमी बिहार के उत्तर-पूर्व में स्तिथ किशनगंज ज़िले से वर्ष 2009 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुँचे जिसे ऐतिहासिक क्षण के रूप में देखा गया ! वहीँ वर्ष 2014 देशभर में चले मोदी लहर को दरकिनार करते हुए मौलाना कासमी ने करीब 2 लाख वोटों से भाजपा के निकटतम प्रतिद्वेंदी डॉ० दिलीप जयसवाल को हराया ! यहीं नहीं मौलाना कासमी ने क़रीब 5 लाख वोट हासिल कर बिहार में सबसे ज़्यादा वोट हासिल करने वाले सांसद का रिकॉर्ड भी बनाया !



बेशक मौलाना कासमी को लगातार 2009 तथा 2014 में जीत ने यह साबित कर दिया कि किशनगंज की जनता उनसे काफी मोहब्बत करती है ! एक बुजुर्ग और साफ-सुथरी छवि के नेता को इतनी इज़्ज़त मिलनी भी चाहिए और मौलाना कासमी इसके हक़दार भी हैं ! लेकिन अगर असल मुद्दे यानि पिछले 8 वर्षों में किशनगंज के चौतरफा विकास की तरफ नज़र डालें तो बड़ी निराशाजनक स्तिथि दिखती है ! जिस जनता ने मौलाना कासमी को दीवानों की तरह वोट और सपोर्ट (मदद) दिया उसमें से एक बड़ा हिस्सा अपने सांसद से नाखुश दिखने लगा है ! चाहे शिक्षा हो या स्वास्थ्य, गरीबी हो या रोज़गार, केंद्र सरकार की विकास परियोजनाएँ हो या अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के लिए फंड, रेलवे सुविधाएँ हो या अन्य मुद्दे, मौलाना कासमी ने एक बड़े तबके को निराश किया है ! जिस किशनगंज की जनता ने वर्ष 2009 में मौलाना के जीत की तुलना 'आज़ादी' से कर डाली थी आज वही जनता उनसे नाराज़ दिख रही है ! 

आज से करीब दो वर्षों के अंदर यानि 2019 में देश में लोकसभा चुनाव होंगे और कांग्रेस के विजयी प्रतिनिधि (सांसद) होने के नाते चुनाव का टिकट भी उन्हें ही मिलेगा ! लेकिन क्या किशनगंज की जनता उन्हें सर-आँखों में बैठाएगी इस मुद्दे पर सोच - विचार करने की ज़रूरत है ! दो वर्ष गुजरने में ज़्यादा समय नहीं लगता है इसलिए किशनगंज की जनता को अभी से ही तमाम पहलुओं पर सोच - विचार करके आगे बढ़ना चाहिए ! अगर उन्हें लगता है कि मौलाना कासमी ने एक सांसद खासकर एक सुरजापुरी बेटे होने का फ़र्ज़ अच्छी तरह से निभाया है तो 2019 में भी एकजुट होकर उन्हें भारी मतों से जिताना चाहिए ! लेकिन विकास से जुड़े जीन बिंदुओं को मैंने इस लेख में बयान किया है उनपर भी एक जिम्मेदार नागरिक और मतदाता के रूप में सोचना ज़रूरी है ! अगर हम जिम्मेवारी से नहीं सोचेंगे तो ये ज़िला विकास के दौड़ में बिहार और देश के अन्य जिलों से पिछड़ता चला जायेगा ! इसलिए बेहतर है कि जनता मौलाना कासमी का विकल्प ढूढ़ना शुरू करदे जिससे 2019 में बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है ! 

वहीँ मौलाना क़ासमी को भी ईमानदारी से अपने 8 वर्ष से कार्यकाल का विश्लेषण करना चाहिए और उन्हें बचे हुए 2 वर्षों में विकासकार्यों में तेज़ी लाना चाहिए ! अगर उन्हें लगता है कि जिस मंशा के साथ से वे सक्रिय राजनीति में आये थे और उनसे कोई कोताई हुई है तो एक वारिस ढूढ़ने में कोई बुराई नहीं है ! मौलाना को ऐसा करने में कोई संकोच भी नहीं होना चाहिए क्यूंकि ये किशनगंज और उसके 18 लाख जनता के उज़्ज़वल भविष्य का सवाल है ! अगर वह किशनगंज की भलाई के लिए ऐसा बड़ा कदम उठाते हैं तो ये ऐतिहासिक कदम होगा और इस ज़िले और छेत्र के लोग तथा आनेवाली पीढ़ियाँ उनके बलिदान को हमेशा याद रखेगी !
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AboutMd Mudassir Alam

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